पितलखोरा गुंफाऐं (लेणीयो) के बारे मे जाणकारी हिंदी
Pitalkhora gumpha ke bare me jankari
• स्थान :
महाराष्ट्र राज्य के संभाजीनगर जिल्हे मे कन्नड तहसील के विभाग मे सातमाला पर्बत शृंखला मे गौताला अभयारण्य मे पितलखोरा की गुंफाऐं पहाडी के दररो मे बसी हुई हैं l
• पितलखोरा गुंफाये देखणे जाणे का यत्रियो के लिये मार्ग:
• महाराष्ट्र राज्य का संभाजीनगर शहर , पुणे शहर तथा मुंबई से आप जा सकते है l
• संभाजीनगर शहर यहासे नजदीक है l
• यात्रिमार्ग : संभाजीनगर – कन्नड - खुलताबाद – गौताला अभयारण्य वहासे पैदल छोटे रास्ते से हम पितलखोरा लेणी देखने जा सकते है l
• मुंबई से नासिक – मनमाड - नांदगाव से आगे खडकी – पाटणा - पाटणा के चंडिका देवी मंदिर से नजदीक वाले जंगल रास्तेसे हम पितलखोरा जा सकते है l
• पुणे शहर से – अहमदनगर – संभाजीनगर – – कन्नड – गौताला अभयारण्य वहा से पैदल छोटे रास्ते से हम पितलखोरा लेणी देखने जा सकते है l
• पितलखोरा मे देखणे लायक स्थानके :
• संभाजीनगर जिल्हे के कन्नड तहसील से जब हम गौताला अभयारण्य के पास आते है l तब वहासे प्रवेश गेट को पार करके हम पार्किंग के जगह अपनी गाडी पार्क करके पैदल रास्ते पितलखोरा गुफावों की तरफ जाणे लग जाते है l तब हमें छोटीशी फ्रश से बनाई हुई पगडंडी लगती है l यह पगडंडी महाराष्ट्र पर्यटन विभागने बनाई है l आगे चलकर यहापे सिडी मार्ग लागता है l इस मार्ग पर लोहे के रॉड बिठाये गये है l आगे बढने पर हमें एक पहाडी नाला लगता है l
• रांजण खड्डे :
पहाडी नाले मे बहने वाले पत्थरो के कारण यहा नाले के एकसंध हुवे पाषाण मे खड्डे हुये है l यह रांजण खड्डे है l मिट्टी के मटके जैसे दिखते है l
• धवलतीर्थ जलप्रपात :
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पाणी का कुंड |
• लोहे का पूल :
महाराष्ट्र पर्यटन विभाग ने याहा पर नाला पार करने के लिये लोहे का पूल किया है l इसे पार करके हम पितलखोरा लेणी गुंफावों के पास पहुंच जाते है l यहा पर कुल मिलकर १३ गुंफाऐं है l नाला पार करने के बाद एक फलक दिखाई देता है l उसपर मराठी, हिंदी, इंग्रजी भाषा मे गुंफा के बारे मे जाणकारी दी है l
गुफा नंबर १,२ :
• पहली और दुसरी गुफा समय के अनुसार तथा परकीय अक्रांतावो ने की गई तोड फोड के कारण नष्ट हुइ है l अभी सिर्फ गुफा ही रही है|
गुंफा नंबर ३ :
तिसरी गुंफा एक विहार है| जो बुध्द भिक्षूओ के रहणे और ध्यानधारणा करणे के लिये बनाया गया है l यहा पर ध्यान कक्ष तथा शयन व्यवस्था के अवशेष दिखाई देते है l
चार नंबर वाली गुंफा एक चैत्यगृह है l यह एक लयन बुध्द मंदिर हैl समय के कारण थोडा तुटा है l इस के अंदर एक तुटा हुवा स्तूप है l स्तूप की दोनो और स्तंभ है l उसके पिछे परिक्रमा मार्ग है l बुध्द धर्मीय भिक्षू यहा पर प्रार्थना करते थे l और इस स्तूप की परिक्रमा करते थे l इस स्तूप मे तीन भाग होते है l निचे का भाग अंग होता है l बीच मे एक वेदिका पट्ट होता है l स्तूप के उपरी हिस्से मे हर्मिका पट्ट होता है l जीस मे मृत बुध्द साधू की अस्तिया रखी जाती थी l जिस कारण बुध्द भिखू उसकी परिक्रमा करते थे l जिससे सकारात्मक उर्जा मिलती थी l यहा पर कुल मिलकर ३७ स्तंभ है l स्तंभ तथा दीवारों पर सुंदर बुध्द प्रतीमाये चित्रित की है| यह भारत वर्ष की अती प्राचीन लेणी गुंफा है| चित्र के रंग कोयला, सफेद मिट्टी, फुल, पत्तो के रंग से रंगाई गई है l यह एक प्राचीन लयन बुध्द मंदिर है l चैत्यगृह की सिडिया तुटी हूई है l पर उनके सपोर्ट को दी हुई सिडी पर यक्षों की मुद्रयाये नकाशी की गई है l जेसे वह सभी का भार उठा रहे है l
• बुध्द विहार :
अगली गुफा के बाहर नीचे जमीन की तरफ नऊ हतीयो का गजस्तर है l जो निचे के पथरो पे खुद्वाया है l वहा पर एक अश्व और राजहंस भी तयार किया है l गजस्तर के अंत मे उपर विहार की तरफ जाणे के लिये एक दरवाजा पहाड मे ही खुदवाया है l उसपर विलोभनीय नकाशी की है l
बाहर की तरफ द्वारपाल है| उनकी वेशभूषा देखकर तत्कालीन जीवन का परिचय मिलता है l यह एक व्यापारी मार्ग पर आणेवाला प्रदेश है l इस कारण अनेक व्यापारी तथा बुध्द धर्मीय भिक्षू यहा पर यात्रा के दौरान रुकते थे l इस कारण उनकी वेशभूषा अनुसार इस द्वारपाल का पेहराव है l इस दरवाजे के नजदीक सर्प की प्रतिमा पहाड मे बनाई हुई हैl जीसके फण पर छिद्र है l इस विहार के उपर पानी का कुंड बनाया गया है l उस से एक छोटीशी नाल बनाकर सिडीयो के नजदीक वाली दिवार से निकलती सर्प के फण तक लाई है l विहार मे जाणेवाले बुध्द भिक्षूओ के पैर धोने के लिये वह बनाई हुई है l अंदर पहाड खोद कर सिडिया बणाई है l
• विस्तृत आवार:
सिडियो से अपर जाणे पर एक विशाल आवार लगता है | उसके आगे स्तंभ और छोटे छोटे ध्यान कक्ष बनाये है l ध्यान कक्ष के बाहर सुंदर द्वार और झरोके हवा के आवागमन के लिये बनाये है l हर दरवाजे के उपर एक अर्ध चंद्रकृती कमान बनायी है lवह पुरे पहाड के पत्थर तराश कर बनायी है l यहा पर बुध्द धर्मीय भिक्षू ध्यान धारणा करते, विश्राम करते थे l
• गुंफा नंबर ५. :
यह एक विहार था | अब उपर का पहाडी हिस्सा तूट चूका है l और अंदर के विश्राम कक्ष की बैठक रह चुकी है l
• गुंफा नंबर ६ :
• यह भी एक विहार है l अंदर सुरेख नकाशी की गई है l
• गुंफा नंबर ७ :
गुंफा नंबर ७ में रहणे वाले भिक्षूओ के लीय पानी की टंकी खुदवाई है l
• गुंफा नंबर ८ :
यह एक भग्न विहार है l अंदर के कक्ष तूट चुके है l लेकीन उपर के छते की नकाशी पट अभीभी अच्छा है l
• गुंफा नंबर ९ और १० :
यह भी विहार ही थे l लेकीन अभी इसमे देखने लायक कूछ भी नहीं है l
• गुंफा नंबर ११ :
चैत्य गृह :
नाले के दुसरी छोर की गुंफा ये देखने के बाद जब हम पहले छोर आ जाते है l तब हमें एक छोटी सी पगडंडी लगती है l उस से चलकर जब हम आगे जाते है l तब हमे एक छोटासा चैत्य गृह लगता है l जिसमे एक से उपर एक ऐसे दो दरवाजे है l इस स्तूप मे जाणे के लिये सिडिया बनाई गई है l चैत्य के अंदर एक स्तूप है l जिसके उपर का हर्मिकापट्ट नहीं है l जहा पर बुध्द साधू की अस्तीया रख्खी जाती थी l स्तूप के बीच मे वेदिका पट्ट है l परिक्रमा मार्ग भी है l
• गुंफा नंबर १२:
भग्न चैत्य :
इस चैत्य के थोडे आगे भग्न चैत्य और स्तूप है l
• गुंफा नंबर १३
चैत्यगृह और स्तूप :
बारह नंबर की गुंफा देखने के बाद थोडा आगे चलते जाणे के बाद हमे सिडीमार्ग लगता है l इस मार्ग से आगे जाणे के बाद हमें तेरह नंबर की गुंफा देखने को मिलती है l यह एक दुसरे से जुडे हूवे दो चैत्य गृह है l इन के अंदर स्तूप है l यह अत्यंत छोटे से चैत्य गृह है l सुरवाती दौर मे बनाये हुवे है l
• चैत्यगृह :
यह एक बुध्द मंदिर है l जो बुध्द भिक्षूओ का पार्थना मंदिर है.
• स्तूप :
चैत्यगृह मे बीचोबीच होणेवाला एक पथ्थर मे बनाया हुवा पथ्थरी गोल जो परिक्रमा करने के लिये बनया जाता हैं l इसके बीच मे वेदिका पट्ट होता है l और उसके उपरी छोर मे हार्मिकापट्ट होता है l जिसमे बुध्द धर्मीय भिक्षू, साधू मरणे के बाद अस्थिया रख्खी जाती है l जिनके कारण स्तूप मे सकारात्मक उर्जा निर्माण होती है l इसलिये यहा पर ध्यान, प्रार्थना, परिक्रमा की जाती है l
• विहार :
बुध्द धर्मीय भिक्षू या चारिका करने वाले साधुओं के लिये रहणे के लिये बनाया हुवा आश्रय स्थान, जहा पर विश्रांती, ध्यान, भोजन व्यवस्था की जाती है l
• पितलखोरा गुंफाओ के बारे मे ऐतिहासिक जाणकारी :
• यह गुंफा तेर से लेकर पश्चिम घाट मे होणेवाले व्यापारी मार्गपर बनायी गई है l
• यह एक लयण बुध्द मंदिर है l
• इसकी निर्मिती की सुरुवात इ.स. पुर्व द्वितीय शतक मे हुई l यहा के क्षत्रप राजावो ने इसकी शुरुवात की थी l
• यह दो तरह के कालखंड की लेणीया है l सुरवाती के काल मे हिनयान लेणी है l जिसमे कोई बुध्द प्रतिमा नहीं है l
• तिसरे से पाचवे शतक मे महायान बुध्द पंथियो ने यहा की शिल्पाकृती को तयार किया है l
• यहा पर एक गुंफा मे एक शिलालेख है l जिसपर गंधिक राज कुल मीतदेव और पैठण के संघीक पुत्र ने इन लेणी गुंफाओ को बनाने के लिये दान किया है l ऐसा उल्लेख है l
• सातवाहन, वाकाटक , यादव काल के बाद आये मुस्लिम अक्रांताओने इन लेणी गुंफा की तोड फोड की l
• यह भारत की अती प्राचीन लेणी गुंफाये है l अब यह विरासत संपूर्ण भारत सरकारने पुरातत्व विभाग के अंदर है l
• यहापर पर्यटन विकास किया जा रहा है l और बहुत सारे पर्यटक इंन्हे देखने आते है l
• यह है पितलखोरा गुंफाओ की जाणकारी हिंदी में,
Pitalkhora gumpha ke bare me jankari
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यह एक प्रायव्हेट वेबसाईट हैं l इसमें लिखी हुई जाणकारी के बारे में आप को आशंका हो तो सरकारी साईट को देखकर आप तसल्लई कर सकते हैं l