Wednesday, November 27, 2024

पितलखोरा गुंफाऐं (लेणीयो) के बारे मे जाणकारी हिंदी Pitalkhora gumpha ke bare me jankari

 पितलखोरा गुंफाऐं (लेणीयो) के बारे मे जाणकारी हिंदी

Pitalkhora gumpha ke bare me jankari

पितलखोरा गुंफाऐं (लेणीयो) के बारे मे जाणकारी हिंदी  Pitalkhora gumpha ke bare me jankari


• स्थान : 

महाराष्ट्र राज्य के संभाजीनगर जिल्हे मे कन्नड तहसील के विभाग मे सातमाला पर्बत शृंखला मे गौताला अभयारण्य मे पितलखोरा की गुंफाऐं पहाडी के दररो मे बसी हुई हैं l

पितलखोरा गुंफाये देखणे जाणे का यत्रियो के लिये मार्ग:

पितलखोरा गुंफाऐं (लेणीयो) के बारे मे जाणकारी हिंदी  Pitalkhora gumpha ke bare me jankari


• महाराष्ट्र राज्य का संभाजीनगर शहर , पुणे शहर तथा मुंबई से आप जा सकते है l

• संभाजीनगर शहर यहासे नजदीक है l

• यात्रिमार्ग : संभाजीनगर – कन्नड - खुलताबाद – गौताला अभयारण्य वहासे पैदल छोटे रास्ते से हम पितलखोरा लेणी देखने जा सकते है l

• मुंबई से नासिक – मनमाड - नांदगाव से आगे खडकी – पाटणा - पाटणा के चंडिका देवी मंदिर से नजदीक वाले जंगल रास्तेसे हम पितलखोरा जा सकते है l

• पुणे शहर से – अहमदनगर – संभाजीनगर – – कन्नड – गौताला अभयारण्य वहा से पैदल छोटे रास्ते से हम पितलखोरा लेणी देखने जा सकते है l

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पितलखोरा मे देखणे लायक स्थानके :

• संभाजीनगर जिल्हे के कन्नड तहसील से जब हम गौताला अभयारण्य के पास आते है l तब वहासे प्रवेश गेट को पार करके हम पार्किंग के जगह अपनी गाडी पार्क करके पैदल रास्ते पितलखोरा गुफावों की तरफ जाणे लग जाते है l तब हमें छोटीशी फ्रश से बनाई हुई पगडंडी लगती है l यह पगडंडी महाराष्ट्र पर्यटन विभागने बनाई है l आगे चलकर यहापे सिडी मार्ग लागता है l इस मार्ग पर लोहे के रॉड बिठाये गये है l आगे बढने पर हमें एक पहाडी नाला लगता है l

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• रांजण खड्डे : 

 पहाडी नाले मे बहने वाले पत्थरो के कारण यहा नाले के एकसंध हुवे पाषाण मे खड्डे हुये है l यह रांजण खड्डे है l मिट्टी के मटके जैसे दिखते है l

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• धवलतीर्थ जलप्रपात :
पितलखोरा लेणी गुंफाओ के नजदीक पाणी का एक छोटासा जलप्रपात है l
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पाणी का कुंड


• लोहे का पूल :

महाराष्ट्र पर्यटन विभाग ने याहा पर नाला पार करने के लिये लोहे का पूल किया है l इसे पार करके हम पितलखोरा लेणी गुंफावों के पास पहुंच जाते है l यहा पर कुल मिलकर १३ गुंफाऐं है l नाला पार करने के बाद एक फलक दिखाई देता है l उसपर मराठी, हिंदी, इंग्रजी भाषा मे गुंफा के बारे मे जाणकारी दी है l

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गुफा नंबर १,२ :

• पहली और दुसरी गुफा समय के अनुसार तथा परकीय अक्रांतावो ने की गई तोड फोड के कारण नष्ट हुइ है l अभी सिर्फ गुफा ही रही है|

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गुंफा नंबर ३ :

 तिसरी गुंफा एक विहार है| जो बुध्द भिक्षूओ के रहणे और ध्यानधारणा करणे के लिये बनाया गया है l यहा पर ध्यान कक्ष तथा शयन व्यवस्था के अवशेष दिखाई देते है l

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• चैत्यगृह :

चार नंबर वाली गुंफा एक चैत्यगृह है l यह एक लयन बुध्द मंदिर हैl समय के कारण थोडा तुटा है l इस के अंदर एक तुटा हुवा स्तूप है l स्तूप की दोनो और स्तंभ है l उसके पिछे परिक्रमा मार्ग है l बुध्द धर्मीय भिक्षू यहा पर प्रार्थना करते थे l और इस स्तूप की परिक्रमा करते थे l इस स्तूप मे तीन भाग होते है l निचे का भाग अंग होता है l बीच मे एक वेदिका पट्ट होता है l स्तूप के उपरी हिस्से मे हर्मिका पट्ट होता है l जीस मे मृत बुध्द साधू की अस्तिया रखी जाती थी l जिस कारण बुध्द भिखू उसकी परिक्रमा करते थे l जिससे सकारात्मक उर्जा मिलती थी l यहा पर कुल मिलकर ३७ स्तंभ है l स्तंभ तथा दीवारों पर सुंदर बुध्द प्रतीमाये चित्रित की है| यह भारत वर्ष की अती प्राचीन लेणी गुंफा है| चित्र के रंग कोयला, सफेद मिट्टी, फुल, पत्तो के रंग से रंगाई गई है l यह एक प्राचीन लयन बुध्द मंदिर है l चैत्यगृह की सिडिया तुटी हूई है l पर उनके सपोर्ट को दी हुई सिडी पर यक्षों की मुद्रयाये नकाशी की गई है l जेसे वह सभी का भार उठा रहे है l

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• बुध्द विहार :

अगली गुफा के बाहर नीचे जमीन की तरफ नऊ हतीयो का गजस्तर है l जो निचे के पथरो पे खुद्वाया है l वहा पर एक अश्व और राजहंस भी तयार किया है l गजस्तर के अंत मे उपर विहार की तरफ जाणे के लिये एक दरवाजा पहाड मे ही खुदवाया है l उसपर विलोभनीय नकाशी की है l 

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बाहर की तरफ द्वारपाल है| उनकी वेशभूषा देखकर तत्कालीन जीवन का परिचय मिलता है l यह एक व्यापारी मार्ग पर आणेवाला प्रदेश है l इस कारण अनेक व्यापारी तथा बुध्द धर्मीय भिक्षू यहा पर यात्रा के दौरान रुकते थे l इस कारण उनकी वेशभूषा अनुसार इस द्वारपाल का पेहराव है l इस दरवाजे के नजदीक सर्प की प्रतिमा पहाड मे बनाई हुई हैl जीसके फण पर छिद्र है l इस विहार के उपर पानी का कुंड बनाया गया है l उस से एक छोटीशी नाल बनाकर सिडीयो के नजदीक वाली दिवार से निकलती सर्प के फण तक लाई है l विहार मे जाणेवाले बुध्द भिक्षूओ के पैर धोने के लिये वह बनाई हुई है l अंदर पहाड खोद कर सिडिया बणाई है l

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• विस्तृत आवार:

सिडियो से अपर जाणे पर एक विशाल आवार लगता है | उसके आगे स्तंभ और छोटे छोटे ध्यान कक्ष बनाये है l ध्यान कक्ष के बाहर सुंदर द्वार और झरोके हवा के आवागमन के लिये बनाये है l हर दरवाजे के उपर एक अर्ध चंद्रकृती कमान बनायी है lवह पुरे पहाड के पत्थर तराश कर बनायी है l यहा पर बुध्द धर्मीय भिक्षू ध्यान धारणा करते, विश्राम करते थे l

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• गुंफा नंबर ५. :

यह एक विहार था | अब उपर का पहाडी हिस्सा तूट चूका है l और अंदर के विश्राम कक्ष की बैठक रह चुकी है l

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• गुंफा नंबर ६ :

• यह भी एक विहार है l अंदर सुरेख नकाशी की गई है l

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• गुंफा नंबर ७ :

गुंफा नंबर ७ में रहणे वाले भिक्षूओ के लीय पानी की टंकी खुदवाई है l

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• गुंफा नंबर ८ : 

 यह एक भग्न विहार है l अंदर के कक्ष तूट चुके है l लेकीन उपर के छते की नकाशी पट अभीभी अच्छा है l

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• गुंफा नंबर ९ और १० :

यह भी विहार ही थे l लेकीन अभी इसमे देखने लायक कूछ भी नहीं है l

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• गुंफा नंबर ११ :

चैत्य गृह :

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नाले के दुसरी छोर की गुंफा ये देखने के बाद जब हम पहले छोर आ जाते है l तब हमें एक छोटी सी पगडंडी लगती है l उस से चलकर जब हम आगे जाते है l तब हमे एक छोटासा चैत्य गृह लगता है l जिसमे एक से उपर एक ऐसे दो दरवाजे है l इस स्तूप मे जाणे के लिये सिडिया बनाई गई है l चैत्य के अंदर एक स्तूप है l जिसके उपर का हर्मिकापट्ट नहीं है l जहा पर बुध्द साधू की अस्तीया रख्खी जाती थी l स्तूप के बीच मे वेदिका पट्ट है l परिक्रमा मार्ग भी है l

• गुंफा नंबर १२:

भग्न चैत्य :

इस चैत्य के थोडे आगे भग्न चैत्य और स्तूप है l

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• गुंफा नंबर १३

चैत्यगृह और स्तूप :

 बारह नंबर की गुंफा देखने के बाद थोडा आगे चलते जाणे के बाद हमे सिडीमार्ग लगता है l इस मार्ग से आगे जाणे के बाद हमें तेरह नंबर की गुंफा देखने को मिलती है l यह एक दुसरे से जुडे हूवे दो चैत्य गृह है l इन के अंदर स्तूप है l यह अत्यंत छोटे से चैत्य गृह है l सुरवाती दौर मे बनाये हुवे है l

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चैत्यगृह : 

यह एक बुध्द मंदिर है l जो बुध्द भिक्षूओ का पार्थना मंदिर है.


• स्तूप : 

चैत्यगृह मे बीचोबीच होणेवाला एक पथ्थर मे बनाया हुवा पथ्थरी गोल जो परिक्रमा करने के लिये बनया जाता हैं l इसके बीच मे वेदिका पट्ट होता है l और उसके उपरी छोर मे हार्मिकापट्ट होता है l जिसमे बुध्द धर्मीय भिक्षू, साधू मरणे के बाद अस्थिया रख्खी जाती है l जिनके कारण स्तूप मे सकारात्मक उर्जा निर्माण होती है l इसलिये यहा पर ध्यान, प्रार्थना, परिक्रमा की जाती है l

• विहार :

 बुध्द धर्मीय भिक्षू या चारिका करने वाले साधुओं के लिये रहणे के लिये बनाया हुवा आश्रय स्थान, जहा पर विश्रांती, ध्यान, भोजन व्यवस्था की जाती है l

पितलखोरा गुंफाओ के बारे मे ऐतिहासिक जाणकारी :

• यह गुंफा तेर से लेकर पश्चिम घाट मे होणेवाले व्यापारी मार्गपर बनायी गई है l

• यह एक लयण बुध्द मंदिर है l

• इसकी निर्मिती की सुरुवात इ.स. पुर्व द्वितीय शतक मे हुई l यहा के क्षत्रप राजावो ने इसकी शुरुवात की थी l

• यह दो तरह के कालखंड की लेणीया है l सुरवाती के काल मे हिनयान लेणी है l जिसमे कोई बुध्द प्रतिमा नहीं है l

• तिसरे से पाचवे शतक मे महायान बुध्द पंथियो ने यहा की शिल्पाकृती को तयार किया है l

• यहा पर एक गुंफा मे एक शिलालेख है l जिसपर गंधिक राज कुल मीतदेव और पैठण के संघीक पुत्र ने इन लेणी गुंफाओ को बनाने के लिये दान किया है l ऐसा उल्लेख है l

• सातवाहन, वाकाटक , यादव काल के बाद आये मुस्लिम अक्रांताओने इन लेणी गुंफा की तोड फोड की l

• यह भारत की अती प्राचीन लेणी गुंफाये है l अब यह विरासत संपूर्ण भारत सरकारने पुरातत्व विभाग के अंदर है l

• यहापर पर्यटन विकास किया जा रहा है l और बहुत सारे पर्यटक इंन्हे देखने आते है l

• यह है पितलखोरा गुंफाओ की जाणकारी हिंदी में,

Pitalkhora gumpha ke bare me jankari




Sunday, November 24, 2024

पितळखोरा लेणीसमूहाविषयी माहिती मराठी Pitalkhora lenisamuha vishyi mahiti

 पितळखोरा लेणीसमूहाविषयी माहिती मराठी

Pitalkhora lenisamuha vishyi mahiti

पितळखोरा लेणीसमूहाविषयी माहिती मराठी  Pitalkhora lenisamuha vishyi mahiti


स्थान :

भारत देशातील महाराष्ट्र राज्यातील संभाजीनगर जिल्ह्यात कन्नड तालुक्यात सातमाळा अजिंठा डोंगर रांगेत आपणास गौताळा अभयारण्यात पितळखोरा लेणी पाहायला मिळतात.

  • पितळखोरा लेणी पाहायला जाण्यासाठीचा प्रवाशी मार्ग:


• पितळखोरा या ठिकाणास संभाजीनगर, मुंबई व पुणे ही आंतरराष्ट्रीय स्थानके आहेत. येथून जाऊ शकतो.

• संभाजीनगर हे ठिकाण येथून जवळ आहे.

• संभाजीनगर येथून पुढे – कन्नड – तेथून पुढे खुलताबाद मार्गे गौताळा अभयारण्य तेथून पुढे पाऊल वाटेने पितळखोरा लेणी पाहायला जाता येते.

• मुंबई येथून – नाशिक – मनमाड - नांदगांवमार्गे खडकी – येथून पाटणा – चंडिकादेवी मंदिर येथून रान वाटेने आपण पितळखोरा लेणी समुहापर्यंत जाऊ शकतो.

• पुणे येथून – अहमदनगर - संभाजीनगर – कन्नड – गौताळा अभयारण्य आणि तेथून पितळखोरा लेणी समुहापर्यंत आपण पोहोचू शकतो.

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पितळखोरा लेणी येथे पाहण्यासारखी ठिकाणे:

• गौताळा अभयारण्य :

महाराष्ट्र राज्यातील छत्रपती संभाजीनगर जिल्यात गौताळा अभयारण्य आहे. हे खुरटी, काटेरी झुडुपे यांसाठी प्रसिद्ध आहे. या अभयारण्य परिसरात आपणास पितळखोरा लेणी पाहायला मिळतात. या ठिकाणी आपणास पितळखोराकडे जाणारे प्रवेशद्वार पाहायला मिळतें. येथून आत आपण आपल्या खाजगी वाहनाने पोहोचू शकतो. या ठिकाणी आपणास पार्किंग साठी जागा आहे.

• पायरी मार्ग :

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पार्किंग परिसरात आपण गाडी पार्किंग करून लेणी समूह पाहायला जाताना वाटेत आपणास पुरातत्व विभागाने बनवलेला पायरी मार्ग लागतो. या वाटेने आपण पुढे गेल्यावर दरीच्या दिशेने असलेला हा प्रवाशी मार्ग लेणी समुहापर्यंत नेऊन पोहोचवतो. या वाटेस लोखंडी रॉड रोलिंग लावलेली पाहायला मिळतात. या वाटेने पुढे आपण ओढ्याच्या पात्रात येवून पोहोचतो.

या ठिकाणी आपणास संपूर्ण कात्याळ खडकाचे पात्र पाहायला मिळते. या ठिकाणी पाण्याच्या प्रवाहातील दगड गोट्यांमुळे तयार झालेले रांजण खळगे पाहायला मिळतात.

• धवलतीर्थ धबधबा व लोखंडी पूल:

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पुढे आपण लेणी समूहाजवळ पोहोचतो. या ठिकाणी आपणास धवलतीर्थ धबधबा पाहायला मिळतो. जो पावसाळ्यात ओसडून वाहताना दिसतो. उन्हाळ्यात मात्र सुकलेला दिसून येतो. हा ओढा पार करण्यासाठी आपल्या सोयीसाठी लोखंडी पूल बांधण्यात आला आहे. तो पार केल्यावर आपणास गुहां पर्यंत जाता येते.

याठिकाणी एक मार्गदर्शक फलक लावण्यात आला आहे.

• पितळखोर गुहा न. १ व २ :

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पूल पार केल्यावर आपणांस गुहा एक व दोन लागतात. या अती प्राचीन काळापासून या अग्निजन्य बेसाल्ट खडकात खोदलेल्या पाहायला मिळतात. यातील भाग ढासळलेला असून त्या ठिकाणी फक्त आधारासाठी म्हणून एक खांब दिलेला दिसून येतो. एक कपारी सारखी रचना या गुहांची आहे.

• गुहा न. ३ विहार :

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• तिसर्या गुहेचे निरीक्षण केल्यास तिच्या सुरवातीचा भाग पडलेला असून आतील दालनांचे अवशेष पहायला मिळतात. आतील बाजूस निवारा खोल्या असाव्यात असे जाणवते. आतील बाजूस बैठक कक्ष, निवारा स्थान असल्याचे जाणवते. समोरील बाजूस कुंड असल्याचे दिसून येते. काळाच्या ओघात तसेच परचक्र आल्यावर येथील वास्तू नष्ट केल्या गेल्याचे व झाल्याचे जाणवते.

• चैत्यगृह :

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भग्न विहार पाहून आपण थोडे पुढे गेल्यावर आपणास एक चैत्यगृह लागते. या चैत्याचा बाहेरील भाग पडलेला आहे. यामध्ये एकूण ३७ खांब आहेत. जे दोन्ही बाजूला समान अंतरावर आहेत. या खांबावर बुध्द धर्मीय देवतेच्या विविध मुद्रा कोरलेल्या दिसून येतात. तसेच बुध्द भिक्षू व शिष्यगण यांची चित्रे काढलेली आहेत. हा स्तूप इसवी सन पुर्व दुसऱ्या शतकात तयार केला असून हा लयन स्थापत्य मंदिर स्वरुप आहे. वरील छत रचना पहिली असता. पिंपळ पानाच्या रचनेसारखी दिसून येते. या चैत्याच्या मध्यभागी एक भग्न शिळा दिसून येते. जी स्तूप असावी. या स्तूपामध्ये पूर्वी बुध्द धर्मीय गुरूंच्या अस्थी ठेवल्या जात. व या स्तूपाच्या भोवती प्रदक्षिणा मार्ग असून तो स्तंभाच्या मागून जातो. हा परिक्रमा मार्ग होय. या ठिकाणी बुध्द धर्मीय सभा आयोजित केली जात असे. स्तंभांच्या मागील बाजूस भिंतीवर बुध्द धर्मीय भितीचीत्रे असून त्यामध्ये वापरलेले रंग हे नैसर्गिक आहेत. जे बनवण्यासाठी फुले, माती, शाडू, कोळसा, झाडाचा चिक व इतर प्राकृतिक घटक वापरून हे रंग बनवले असावेत. काळाच्या ओघात ही चित्रे पुसट झालेली दिसून येतात. या चैत्यामध्ये जाण्यासाठी पायरी मार्ग बनवला गेला होता. तो भग्न पावलेला आहे.पायरी बाजूच्या वेदिका पट्टीवर कोरलेल्या सुंदर यक्ष आकृती वरून ते सिडीचा भार उचलत आहेत. हे दाखवले आहे. यावरून तत्कालीन नक्षीची कल्पना येते.

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यक्ष आकृती नक्षी 


• विशाल विहार :

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चैत्य पाहून थोड पुढे गेल्यावर आपणास भग्न हत्ती असलेली चरण वेदिका पट्टीवर विशाल अशी दालने असलेला विहार लागते. हत्ती घोडा, राजहंस यासारखी शिल्पाकृती ही बुध्द चरित्राचा भाग आहेत. हत्ती शिल्पकृती मध्ये एकूण नऊ हत्ती आहेत. ते पाहून पुढे कोपऱ्यात आल्यावर आपणास वरील भागात जाण्यासाठी खोदून तयार केलेला दरवाजा लागतो. या दरवाजाची चौकट सुंदर नक्षिने सुशोभित केली आहे. या शेजारी द्वारपाल असून त्यावरील चेहरा शरीर व वस्त्र आभूषणे पाहिल्यावर तत्कालीन लोकांचे राहणीमान याविषयी अधिक माहिती मिळते. तसेच त्यावरील वस्त्र हे व्यापारी निर्यात केल्या जाणाऱ्या परदेशी मागणी असणाऱ्या मुलायम वस्त्रासारखे असल्याचे जाणवते. चौकटी शेजारी नागशिल्प आहे. या विहाराच्या वरील बाजूस एक पाण्याचे टाके आहे. जे विहाराच्या वरील बाजूने येणारे पाणी साठवण्यासाठी केले होते. त्या टाक्यापासून एक छोटीशी पाण्याची खाच बनवून उतारावरील भिंतीतून थेट पायरी मार्गानें दरवाजाच्या बाजूने नागशिल्पाच्या फणीपर्यंत आणलेली आहे. ज्यातून येणारे पाणी नागाच्या फणीतून खाली पडते. जे बुद्ध धर्मीय शिष्य व धर्म प्रसारक या विहारात प्रवेश करत त्यांचे पाय धुण्यासाठी बनवले आहे. यावरून तत्कालीन पाणी व्यवस्थापन दिसून येते. दरवाजावर सुंदर नक्षी असलेला पट्ट दिसून येतो. या दरवाजातून वरील बाजुस पायरी मार्गाने चालत जाता येते.

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• विस्तृत आवार : 

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या पायरी मार्गानें आपण विस्तृत अवार असलेल्या भागात येतो. हे स्थान चर्चात्मक सल्ला मसलतीसाठी ठेवलेले असावे. त्याच्या आतील बाजूस अनेक खोल्या आहेत. ज्यामधे ध्यान कक्ष आहेत. ध्यान कक्षाच्या प्रवेशिकेवर अर्धचंद्राकृती पिंपळ पान नक्षी आकारात कोरलेल्या डिझाईन आहेत. त्यावर सुंदर नक्षी दगडावर छिनी हातोडा वापरुन कोरलेली असून सुंदर जाळी काम केलेली नक्षी असलेली गवाक्षे या विहारांना आहेत. ज्यातून हवा आत बाहेर जावी अशी रचना आहे. ध्यान धारणा करण्यासाठी व विश्रांती घेण्यासाठी आतील दगड तासून रचना केलेली दिसून येते. येथे बुद्ध धर्मीय शिष्य व धर्म प्रसारक ध्यान धारणा व विश्रांती घेत असतं. बाहेरील बाजूस काही स्तंभ देखील तयार केलेले पाहायला मिळतात.

पितळखोरा लेणीसमूहाविषयी माहिती मराठी  Pitalkhora lenisamuha vishyi mahiti

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• लेणे क्रमांक ५ :

पाचव्या क्रमांकाचे लेणे हे देखील विहार असावे. आज तिथे आपणास भग्न अवशेष पहायला मिळतात. बाहेरील भाग पडलेला असून फक्त आतील बैठका अस्तित्वात आहेत.

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• लेणे क्रमांक ६ :

या लेण्यात देखील बैठक व्यवस्था शिल्लक राहिली असून त्यामध्ये सुंदर नक्षीकाम असलेले पाहायला मिळते.

पितळखोरा लेणीसमूहाविषयी माहिती मराठी  Pitalkhora lenisamuha vishyi mahiti


• लेणे क्रमांक ७ :

या लेण्यांमध्ये एक पाण्याचे टाके आहे. जे या ठिकाणी राहणाऱ्या भिक्षूंच्या पिण्याच्या व खर्चाच्या पाण्याची गरज भागवण्यासाठी खोदली गेली असावीत.

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• लेणे क्रमांक ८. :

पुढील लेणे हे एक भग्न विहार असून यामध्ये वरील बाजुस सुंदर नक्षी हर्मीकापट्ट आहे. जो वरील स्तंभावर कोरलेला दिसून येतो.

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• लेणे क्रमांक ९ व १०. :

नवव्या व दहाव्या क्रमंकाचे लेणे ही एक भग्न अवस्थेत असलेली गुहा आहे.

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• या ठिकाणी असणाऱ्या उरलेल्या लेण्यांची रचना भग्न पावलेली असून फक्त अवशेष शिल्लक आहेत.

• पुलाच्या पलीकडे आसलेली लेणी पाहून जेव्हा आपण पुलाच्या अलीकडील भागात येतो. त्यावेळी अलीकडील भागातून एक अरुंद वाटेने आपण चालत गेल्यावर त्या ठिकाणी एक चैत्य लागतो.

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• लेणे क्रमांक ११ :

अकरावे लेणे हा एक चैत्य आहे. दुमजली दरवाजे असणारा हा चैत्य आहे. यामध्ये चढून जाण्यासाठी पायर्या आहे. आतील बाजूस एक लहान स्तूप आहे. त्याच्या मध्यभागी वेदिका पट्ट आहे.

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• या स्तूपा शेजारी भग्न असा स्तूप पाहायला मिळतो.

• लेणे क्रमांक १२ व १३ :

वरील बाजूस असलेले स्तूप व चैत्य पाहून आपण थोडे पुढे गेल्यावर आपणास पायरी मार्ग लागतो. या मार्गाने खाली उतरून गेल्यावर आपणास सलग दोन चैत्य लागतात. हे आकाराने लहान आहेत. आतील बाजूस स्तूप आहेत. त्यातील एका चैत्या मधील स्तूप पूर्ण स्वरूपात असून या चैत्याच्या सभोवती प्रदक्षिणा मार्ग आहे.

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पितळखोरा लेण्याविषयी ऐतीहासिक माहिती :

• पितळखोरा लेणी समूहाची निर्मिती ही इसवी सनाच्या पूर्वी दुसऱ्या शतकात झालेली आहेत. तत्कालीन बुध्द धर्मास राजाश्रय दिलेल्या क्षत्रपांनी दिलेल्या दानातून या लेण्यांची निर्मिती झाली.

• या लेणी समूहातील चौथ्या क्रमांकाच्या लेण्यात एक शिलालेख आढळतो. यामध्ये गंधीक कुल मितदेव व पैठणचा संघक पुत्र याचा या लेणी उभारणीस दान दिल्याचा उल्लेख आहे.

• या ठिकाणी १३ लेणी समूह आहेत. ही लयण स्थापत्य प्रकारात येतात. लयण स्थापत्य म्हणजे डोंगर अथवा दणकट खडक खोदून त्यामधे छीन्नी हतोड्याचा वापर करून खोदून केलेली शिल्पाकृती मंदिरे, विहार, निवासगृह होय.

• ही लेणी बुध्द धर्मीय दोन पंथाची स्मरणस्थाने आहेत. यातील काही स्तूप व विहार यांची निर्मिती प्रथम सत्रात झालेली आहेत. ती हिन यान काळातील आहेत. ज्या ठिकाणी शिल्पाकृती नाही ती हिन यान पांथियानी बनवली आहेत. तर काही नंतरच्या काळात म्हणजे इसवी सनाच्या दुसऱ्या शतकापासून चौथ्या शतकापर्यंत बनवलेली आहेत. वाकाटक राजवटीत येथील द्वारपाल बुद्ध धर्मीय भितीचित्रे , हत्ती व इतर शिल्पाकृती झाल्याचे आढळून येते. ही महायान लेणी आहेत. ज्यांनी पुढे मुर्तीपूजेस चालना दिली.

• चैत्य: चैत्य म्हणजे बुध्द धर्मीय मंदिरे

• विहार : बुद्ध धर्मीय शिष्य व धर्म प्रसारक यांना निवास व्यवस्था होईल अशा साठी बांधलेल्या विश्रांती वास्तू.

• स्तूप : बुध्द धर्म प्रसारक योगी यांच्या मृत्यू नंतर त्यांच्या अस्थी ठेवण्यासाठी बांधलेली पूजनीय जागा. ज्यामुळे एक सकारात्मक ऊर्जा आपल्याला मिळावी यासाठी बांधलेली वास्तू, या सभोवती परिक्रमा मार्ग बनवला जातो. व येथे बुध्द शिष्य ध्यान धारणा करतात. व परिक्रमा करून सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करतात

• पुढील काळात हिंदू धर्मीय राजवटीच्या काळात येथील लेणी सुरक्षित राहिली.

• पुढे परकीय आक्रमणे आल्यावर येथील वास्तू नष्ट केल्या गेल्या.

• वारंवार होणारे प्राकृतिक बदलांचा व इतर मानवी आक्रांतामुळे येथील स्तूप, विहार , चैत्य यांची पडझड झालेली आहे.

• पुढे हा प्रदेश मुघल, मराठे, इंग्रज या राजवटीत राहिला.

• १५ ऑगस्ट १९४७ सालापासून स्वतंत्र भारत सरकारच्या ताब्यात ही लेणी आहेत. या ठिकाणी पर्यटनाच्या सुविधा भारत सरकार पुरवत आहे.

अशी आहे पितळखोरा लेणीसमूहाविषयी माहिती मराठी

Pitalkhora lenisamuha vishyi mahiti




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